ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 |
8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 |
15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 |
22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 |
29 | 30 |
هر نفست شعر بود و من تکرار سرودت و من کهنه کلامت را به امید ترانه ای دیگر در گلدان دلم کاشته ام... امید جوانه بزند کاش قدرش میدانستم
روزگاری که آسمان دلمان آبی بود
پرتویی نور بر سفره مان
گندمهامان سبز...
مگر چه کردم با این برکت؟
هر چه بر ترکهای خشک قلبم آب میریزم ...نمیجنبد!